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Showing posts from May, 2011

सुक्रगुज़ार

ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, पैरो से हमारे टकरा जाती कोई अजनबी लहर, और आसमान मे हौले से चाँद निकल आता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता ! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, अक्सर हमारे चाय की प्यालियाँ ट्रे मे टकरा जाया  करती और मेरे अख़बार के चंद पन्ने उसकी हाथो मे होते! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता ! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, उसकी आखों से छलक पड़ते दो आह्लाद क आँसू, मेरी जेब से निकले  चंद सिक्के अनमोल हो जाते! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, तेरे इम्तिहान मे हमारे लिए सवाल एक से होते, और मैं उसकी नकल करके पास हो जाता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, उसकी दुआओं मे कहीं हमारा भी नाम होता और शायद, मेरे  पास माँगने को कुछ भी नही.. ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!!