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Showing posts from 2011

अनायास!

एक ख़याल, किसी टूटे पत्ते सा, चल पड़ा है, हवाओं के हिचकोलों संग, गुलाटियाँ ख़ाता हुआ, दिशाहीन ! बस खो जाने, कई सारे गिरे पत्तों मे, करके तय, आदि से अंत का फासला, देख जाने कितने मौसम, लक्ष्यहीन!  ज़मीं का ज़ोर है शायद, शायद फ़िज़ा की साज़िश, या फिर वक़्त का सितम एक और पत्ता टूटा है अभी,  अनायास!

सुक्रगुज़ार

ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, पैरो से हमारे टकरा जाती कोई अजनबी लहर, और आसमान मे हौले से चाँद निकल आता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता ! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, अक्सर हमारे चाय की प्यालियाँ ट्रे मे टकरा जाया  करती और मेरे अख़बार के चंद पन्ने उसकी हाथो मे होते! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता ! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, उसकी आखों से छलक पड़ते दो आह्लाद क आँसू, मेरी जेब से निकले  चंद सिक्के अनमोल हो जाते! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, तेरे इम्तिहान मे हमारे लिए सवाल एक से होते, और मैं उसकी नकल करके पास हो जाता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता! ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता गर, उसकी दुआओं मे कहीं हमारा भी नाम होता और शायद, मेरे  पास माँगने को कुछ भी नही.. ज़िंदगी ! मैं तेरा कुछ और सुक्रगुज़ार होता!!

दिल तो बेवकूफ़ है जी!

बड़ी हसरत थी कि किसी की मद भरी आखों पे लिखूं, कुछ बूँदों सी कमसिन,पर बारिस सी हसीन बातों पे लिखूं, पर ये साली feeling कभी आती ही नहीं! अक्सर लोगों को सुना था इश्क़ मे शायर होते, हम मुकम्मल शायरी की खातिर आशिक़ी कर बैठे! लगनी तो खैर दोनो ही सूरत मे थी! और फिर एक दिन! कहत किशोर सुनहु मेरे भाई, दिल की झोपड़ी मे साली feeling सी आई, ठीक वैसे जैसे  दातों के बीच कुछ रेशा सा फँस गया हो. आख़िरकार हमने भी गब्बर अंदाज़ मे उनसे हाथ माँग लिया, वो भी ठुकरा कर कह बैठे,अब तेरा क्या होगा कालिया? अपनी शोले भी रामू की आग बनकर रह गयी! तब से अब तक वो उस अंधेर झोपडे मे खामोश सी बैठी है, दाँतों मे अभी तलक़ कुछ फँसा हुआ है शायद.. अब ये feeling साली   जाती ही नही.!