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Showing posts from January, 2010

बिखराव

दुनिया देखता हूँ तो , जान पाता हूँ बिखर गयी  है कुदरत भी ठीक मेरी तरह ! अकेला नहीं  हूँ मैं ! कटोरे में पड़ा था अब तलक वो  चुल्लू भर पानी फर्श पर बिखरा पड़ा  है ! पर सिमट रहा है वो ! लौटती लहरों पे खड़ा हूँ , जमी  न बचा पाऊं शायद  , कुछ रेत  बचा ही सकता हूँ,  अपने पैरो तले!

ख्वाहिशे..

बड़ी  कुत्ती  चीज़  हैं  ये  ख्वाहिशें   भी यूँ ही सफ़र कभी खतम नहीं होते   ना मिला तो सबकुछ, मिल गया तो  ख़ाक !