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Showing posts from 2010

बदलाव

Patratu Thermal Power Station तुम्हारा ख़याल है  ,कुछ भी तोह नहीं बदला वहीँ तोह खड़ा है वो सहतूत का पेड़ उन खट्टी शामों को शाखों  पे सजाये ये रहा चापाकल के पास इंसानों का जत्था कोक  से आज भी प्यास नहीं बुझती ना ! आज भी दिखाई देता है सड़क से  मेरे घर की  खिड़की का पल्ला बाहे फैलाए ये सड़क आज भी मिल जाती है उसी मैदान से पहली बार जहाँ घुटने  छिले थे मेरे ! कुछ तोह बदला है लेकिन झुक गया है जरा सा  सहतूत का पेड़, शायद उम्र की बोझे के तले! चापाकल  से  आखे अब  ऐसे देखती हैं , जैसे अजनबी हूँ इस राह क लिए! घुन बसते  हैं  खिड़की क पल्लों में आजकल पीपल की जड़े  भी तोह घुसपैठ कर रही है दीवारों से! क़दमों को भी गुमान होता है अपनी ताकत पर ठोकरों से भी  टूटने लगी है ये सड़क भी किनारों से! दिल कहता है फिर सब पहले सा  क्यों नहीं है? मैं कहता हूँ ,बेटे! सबकुछ वहीँ है बस  वही नहीं है!

बिखराव

दुनिया देखता हूँ तो , जान पाता हूँ बिखर गयी  है कुदरत भी ठीक मेरी तरह ! अकेला नहीं  हूँ मैं ! कटोरे में पड़ा था अब तलक वो  चुल्लू भर पानी फर्श पर बिखरा पड़ा  है ! पर सिमट रहा है वो ! लौटती लहरों पे खड़ा हूँ , जमी  न बचा पाऊं शायद  , कुछ रेत  बचा ही सकता हूँ,  अपने पैरो तले!

ख्वाहिशे..

बड़ी  कुत्ती  चीज़  हैं  ये  ख्वाहिशें   भी यूँ ही सफ़र कभी खतम नहीं होते   ना मिला तो सबकुछ, मिल गया तो  ख़ाक !