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Showing posts from May, 2009

अब

वक़्त था जब ये जहाँ हमारा था अब तो सांस भी मांग कर लिया करते हैं वक़्त था जब इतराते थे अपने साये को देख कर भी अब तो आईने से भी मुह छुपा के चलते हैं वक़्त था जब मंजिलो तक पहुचने का हौसला था अब तो ठोकरों से ही टूट जाया करते हैं वक़्त था बेपरवाह ख्वाबो में जिया करते थे अब हकीकत से भी हम हँस के मिला करते हैं दरअसल उम्र बन जाते हैं कुछ लम्हे तजुर्बा बन जाते हैं कुछ फैसले बाजुए अब कर्म नही करना चाहती ये अब चेहरा छुपाने के काम आती हैं आहिस्ता आहिस्ता ही सही भ्रम टूट जाता है जिंदगी अपनी औकात पे आजाती है बस पहली कुछ दफा बाद दर्द होता है फिरजनाब आदत सी हो जाती है...

बैठे - बैठे

यूँ ही बेकार बैठे बैठे जरा दूर एक बड़े पत्थर पर निशाना तय कर किया हमने एक के बाद एक जाने कितने कंकड़ हम फेकते रहे कुछ करीब से निकले , कुछ दूर से गुजरते गए, एक दो तो बिलकुल बीचोबीच जा लगे , कुछ जाने कहाँ ओझल से हो गए ! खैर ,वो पत्थर शायद ही डोला ना कंकड़ ख़तम हुए.. मुड़ कर देखा तोः वक़्त जरा दूर निकल गया था !!!