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Showing posts from 2009

कुछ भी नही!

आखें खुली ज़मान देखा रोए ,मुस्कुराए समझा क्या? कुछ भी नही! तमन्ना की जतन किए पा लिया रहा क्या? कुछ भी नही! नैना मिले इश्क़ हुआ आँसू बहे मिला क्या ? कुछ भी नही! कोशिश की चूक गये नही मिला खोया क्या? कुछ भी नही! यादे है पछ्तावे हैं साँस रुकी बचा क्या? कुछ भी नही!

A dedication to sachin's 175!!

तुम कहते थे तो यकीन नही होता था, कि हर कोई जुटा है हस्ती बचाने में! एक इन्सा कल खुदा होने चला तो खुदा इन्सा हो गया!!

सुकून

इक सुबह इरादा किया, आज ज़रा सुकूं ढूँढ ही लेते हैं! अक्सर बस झलक दे जाता है. आज पता ही पूछ लेते हैं! वो रुख अख्तियार कर चले जिस ओर कम लोग बढ़ रहे थे इक धुंधली तस्वीर थी हर किसी के पास, जैसे बरसो पड़ी अलमारी से आज ही निकला हो!! हुजूम बढ़ता रहा, दिन ढलता रहा, रात के रखवाले ड्यूटी पर आ गए थे ! पाँव फैलाए हम तरु की जड़ में पड़ गए थे ! हँवा सखियों संग ज्यो ही खिल्किलाती सी गुज्ररी, किसी ने कंधे पर किसी ने हाँथ फेर दिया, चौक कर मुड़कर पूछ "कौन भाई शाब?" उफ़ जा चुके थे वो, फिर पता नहीं पूछ पाया !

नजरिया

आज फिर कोई टकरा गया मुझसे, फिर अपना नाम गम बता गया गर यकीं कर लूं उसका तोःकल जो मिला था , इसी सड़क पर , वो कौन था? शक्ल से तोः बेहतर था जरा , खुशियों का कोई सगा रहा होगा| पर हर दफा वही धोका कैसे खा जाता हूँ.. बहरूपिये वक़्त को पहचान नहीं पाता हूँ.. नजरो की खता है ना न कसूर मेरा है.. नजरिया है.. बदलता रहता है.....

त्रिवेणियाँ

#################################################################### चाहे अल्फाजो से तराशते रहे बरसो कितनी भी दफा चोट करो सोचों से पर कुछ एहसास कभी शक्ल नहीं ले पाते!! ######################################### बड़ी देर समझाते रहे हम दिल को बड़ी देर दिल हमे समझाता रहा इल्म ही ना हुआ कैसे ज़िन्दगी गुजर गयी !!! ######################################### आरजू थी की एक रोज़ आपसे फुर्सत में यूँ मिलें चंद दास्ताँ कहे अपनी,चंद दास्ताँ सुनें कभी बताया नहीं आपने, फुर्सत से आपका हेड-टेल वाला रिश्ता है !!! ######################################### मेरे खयालो से तेरे घर का रास्ता मुझे पहचान गया है भटक भी जाता हूँ तो रास्ता खुदबखुद मुड़ जाता हैं यू ही नहीं , फासले तय करने में अब मज़ा आने लगा है!!! ######################################### उलझ पड़े हैं दो ख़याल आ़ज भी शक्ल एक सी है, इरारदे जुदा हैं फिर आज जो ग

अब

वक़्त था जब ये जहाँ हमारा था अब तो सांस भी मांग कर लिया करते हैं वक़्त था जब इतराते थे अपने साये को देख कर भी अब तो आईने से भी मुह छुपा के चलते हैं वक़्त था जब मंजिलो तक पहुचने का हौसला था अब तो ठोकरों से ही टूट जाया करते हैं वक़्त था बेपरवाह ख्वाबो में जिया करते थे अब हकीकत से भी हम हँस के मिला करते हैं दरअसल उम्र बन जाते हैं कुछ लम्हे तजुर्बा बन जाते हैं कुछ फैसले बाजुए अब कर्म नही करना चाहती ये अब चेहरा छुपाने के काम आती हैं आहिस्ता आहिस्ता ही सही भ्रम टूट जाता है जिंदगी अपनी औकात पे आजाती है बस पहली कुछ दफा बाद दर्द होता है फिरजनाब आदत सी हो जाती है...

बैठे - बैठे

यूँ ही बेकार बैठे बैठे जरा दूर एक बड़े पत्थर पर निशाना तय कर किया हमने एक के बाद एक जाने कितने कंकड़ हम फेकते रहे कुछ करीब से निकले , कुछ दूर से गुजरते गए, एक दो तो बिलकुल बीचोबीच जा लगे , कुछ जाने कहाँ ओझल से हो गए ! खैर ,वो पत्थर शायद ही डोला ना कंकड़ ख़तम हुए.. मुड़ कर देखा तोः वक़्त जरा दूर निकल गया था !!!