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Showing posts from 2008

आखिरी एहसान

वो जा रही थी , अलविदा कह कर मेरे सुमधुर सपनों को , मेरे प्राणप्रिय अपनों को , गुनगुनाये कुछ गीतों को, कुछ अधूरे से गज़लों को, कुछ अनजाने ठहरावों को , कुछ अजनबी मज़िलों को, कुछ जवाँ सी ख्वाहिसों को , कुछ बचकानी फरमाइशों को , मेरे अस्त होते अस्तित्व को , मेरे धुंधले से व्यतित्व को , वो आज छोड़ कर जा रही थी .. आखिरकार मैंने आवाज लगा ही दी , ए निष्ठुर !!! जरा खता तो बताती जा ? वो जाते जाते ठहर गयी , मुड़कर मेरे करीब आई और कहने लगी :: तू हर रोज़ एक ख्वाहिश करता रहा , और मैं हर पल उसे पूरी करने की कोशिश!!!! कुछ कोशिशे हकीकत में बदलती रही, और हर हकीकत एक फरमाइश जनती रही.. आज भी शिकायत ये नहीं , की तूने ख्वाहिसें करता रहा , शिकायत ये है की तू मुझसे बस शिकायते ही करता रहा !! भला क्यों बनी फिरती रहूँ वन वन, बन बन तेरी परछाई?? जब कभी लम्हे भर की खातिर भी,तुझे मरी कद्र ना आई?? अभी इन सच्चाई की गहराइयों से उसके करीब आ ही पाता, कि वो मुझपर आखिरी एहसान कर, कहीं दूर निकल चुकी थी ...

वज़ह

अक्सर ज़िन्दगी मुझसे एक वजह की ख्वाहिस करती थी और आज ना जाने कहाँ से वो सामने आ गयी!!!! उसी पल मैंने खुदा से उसी कि शिकायत की ; कि ऐ खुदा !!!तू तो ख्वाब चुराता है?? डिजाईन किसी और का,कॉपी राईट तू कराता है?? खुदा ने कहा,बन्दे !!!! क्या लगा तुझे वो तुजसे मिलने आई है??? ये खूबसूरत बला तेरे सपनो कि परछाई है??? होश में आ$$$$,आखें खोल!!! ज़िन्दगी के सवाल की गहराई में झाँक ज़रा तुझे जवाब की इक किरण नज़र आएगी | इस बला को कहाँ कहाँ खोजेगा तू?? तू बस उस वज़ह कि तलाश करता रह, जिदगी को वज़ह खुदबखुद मिल जायेगी |

तेरे जाने का गम न था...

तुम जा रही थी जब. इक दास्तां को अंजाम देकर, हालत से मजबूर इंसान को, बेपरवाही का इल्जाम देकर, कोसती रही थी तुम, मेरे संग बीते हर पल को, भूलाने की कोशिश में, याद करती उस कल को, कुछ जज्बातों से तुम अकेले लड़ी थी, कई सवालो के बीच तुम अकेले अरी थी, अफ़सोस था तुझे उन समझौतों पर, जो तुने मेरी खातिर किये, अफ़सोस था तुम्हे उन कुर्बानियों पर , जो तुने बस मेरे किये दिए. सब कष्टों को तुम, अश्कों में बहती गयी थी.. भविष्य के लिए एक सबक था, तू उसे दुहराती गयी थी. लेकिन मेरे परेशान दिल के पास, अश्कों का सहारा न था, आज आखो को मनाने वास्ते, मेरे पास कोई बहाना ना था.. क्योंकि तुमसे जुरा हर समझौता , मैंने अपनी खातिर किया, जो भी तुझे दिया, अपने खातिर दिया.. तुझपे एहसान किया होता तोः, कुछ खाहिश होती... मैंने तो रिश्ते में दिया, रिश्ते से लिया... उन बीते पलों का मुझे कोई गम नहीं... वो कुछ पल ही थी ज़िन्दगी,वो भी कम नहीं...

बूँद का सफर

एक बूँद थी मैं, नन्ही सी,मासूम सी ; अनंत जलराशि में ; कहीं कुछ तलाशती सी; लहर संग लहराती ; पवन संग इठलाती; किनारों को हौले से छू; पल में गुम हो जाती; अम्बर के विस्तार को ; अचंभित नैनो से ताकती; कल्पना के पंख लगाए; उन्मुक्त फलक में विचरती; किन्तु,कब इल्म था मुझे.. वक़्त दरिय सा बह रहा था; तमन्ना और सच का; अजीब सा मिलन हो रह था; अब आसमान मेर बसेर था; ऐसा प्रतीत हुआ जैसे, ये के नया सवेरा था. पर आज मैं आसमां के अंक से; जब भी झाकती हूँ ; ना वो किनारा दिखता है ना लहर ; ना वो मंजर दिखता ही,ना वो सहर; बस अरमानों संग खिलखिलाता पल नज़र आता है; वक़्त के परतों के बीच दबा कल नज़र आता है; किन्तु मुझे अस्तित्व और याद दोनों को सहेजना होगा.. अलविदा दोस्तों क्योंकि; अब क्षितिज की ओर चलना होगा~